अनुकरणीय श्रीमदभगवद गीता [धर्म-आध्यात्म पर स्थायी स्तंभ] - अजय कुमार
परिचय:- योग का सर्वोतम एक मात्र ग्रन्थ गीता है। गीता में सात सौ श्लोक है। गीता आत्मा को परमात्मा से मिलन का मार्ग जगत को बताती है। गीता ब्रह्म विद्या है। इस प्रकार मोक्ष प्राप्ति के मार्ग में आनेवाली प्रत्येक समस्या एवं सवालों का जवाब है गीता।
गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए व्यक्ति मोक्ष कैसे प्राप्त करें, बतलाती है गीता। जन्म के साथ ही मृत्यु सत्य है। इस सत्य को जानते हुए भी भौतिकता के पीछे भागते रहना; संसार मे अपनी झूठी शान-शौकत के लिए कुछ भी करने से नही हिचकना; धन के पिछे भागते इंसान को आए दिन विभिन्न नई इच्छाओ को जन्म देना एवं उनकी प्राप्ति के लिए येन-केन-प्रकारेण प्रयास करना यह भौतिकता का चरमोत्कर्ष है।
क्या कभी आपने इस संसार के परे जा कर कल्पना की है? यह मन सदैव चंचल क्यों हो जाता है? मृत्यु सत्य क्यों है? समय गतिशील क्यों है? तमाम भौतिक साधनो को जुटाने के बावजूद इंसान बेचैन क्यों है? किसी भी व्यक्ति को शांति की प्राप्ति कैसे होगी? सवाल अनेक है? जबाब गीता है।
प्रत्येक व्यक्ति जिस माता-पिता के घर जन्म लेता है उनकी सम्पति का स्वामित्व प्राप्त करना चाहता है। इस स्वामित्व प्राप्ति के लिए चाहे उसे जो भी करना पडे करता चला जाता है। इस सच को जानते हुए भी कि एक दिन यह सब कुछ छोडकर उसे जाना होगा फिर भी मोहवश वह स्वामी बनने की लालसा लिए जीवन पर्यंत भौतिक सुख के पीछे भागता रहता है। पिता की सम्पति पाने के लिए वह क्या क्या नहीं करता।
प्रत्येक व्यक्ति या जीव में आत्मा होती है इस प्रकार आत्मा के पिता परमात्मा(परम आत्मा) हुए। फिर परमात्मा की सम्पति पाने के लिए हम प्रयास क्यों नहीं करते है? अगर हम थोड़ा भी प्रयास करें तो हम सब को परमात्मा की सम्पति अवश्य प्राप्त होगी।
गीता ज्ञान विषय पर हम सब विशुद्ध चिंतन करें। परमात्मा परम दयालु है अवश्य ही वह आपके प्रत्येक क्षण में मौजूद रहकर आपको अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति देना चाहते है पर, उनकी सम्पत्ति पाने का मार्ग भौतिकता नहीं (जो क्षणभंगुर है) बल्कि योग साधना है। परमात्मा के द्वारा दी गयी सम्पति कभी नष्ट नहीं होगी किंतु आपके द्वारा अर्जित सम्पति आपके सामने ही नष्ट हो जाएगी। अब तय आपको करना है, आपको परमात्मा की सम्पति चाहिए या सांसारिक सम्पति जो अब तक आप प्राप्त कर रहे है पर फिर भी बेचैन है शांति कही नहीं मिली।
कैसे करें गीता पाठ:- गीता पाठ करना अपने आप मे दुर्लभ है। गीता पाठ करने का भाव अपने मन में लाना मोक्ष प्राप्ति मार्ग की प्रथम सफलता है।
प्रत्येक मनुष्य अर्जुन की तरह है। अत: अपने को अर्जुन मानकर गीता का पाठ आरंभ करें ईश्वर का स्नेह आपको स्वत: प्राप्त हो जायेगा। इस संसार में ऐसी कोई चीज नहीं जिसे आप पा न सकते हो पर, ईश्वर का स्नेह पाना सर्वोत्तम है वही परम शांति है।
घी का एक दीपक जलाए और सुगंधित अगरबती से अपने आस पास के वातावरण को शुद्ध कर शांत मन से गीता का पाठ आरंभ करें।
श्रीमद्भगवदगीता- पहला अध्याय
धृतराष्ट्र: उवाच।
मामका: पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय:॥1॥
अनुवाद:- धृतराष्ट्र ने कहा, हे संजय। धर्मभूमि कुरूक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से इकठ्ठे हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?
संक्षिप्त टिप्पणी :-
कुरूक्षेत्र- एक अत्यंत प्राचीन पवित्र तीर्थस्थल है। जो अम्बाला से दक्षिण तथा दिल्ली से उत्तर में है।
धर्मक्षेत्र- वैदिक संस्कृति का मुख्य केन्द्र होने के कारण कुरूक्षेत्र को “धर्मक्षेत्र” अर्थात पुण्य भूमि कहा गया है। बारह वर्ष वनवास एवं एक वर्ष अज्ञातवास बीत जाने के पश्चात अपना राज्य वापस पाने हेतु पाण्डव दुर्योधन के पास एक दुत भेजते है। किंतु दुर्योधन दूत के आग्रह को ठुकरा देता है। अंतत: श्रीकृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापूर जाते है। श्रीकृष्ण पितामह भीष्म, महात्मा विदुर, आचार्य द्रोण एवं राजा धृतराष्ट्र से भरे दरबार मे पाण्डवो के लिए न्याय माँगते है किंतु कालचक्रग्रस्त दुर्योधन एक सुई की नोक जितनी भूमि बिना युद्ध को देने के लिए तैयार नहीं होता हौ। क्रोध से भरकर वह श्रीकृष्ण को भी बंदी बनाने का असफल प्रयास करता है। पाण्डव युद्ध को अनिवार्य जानते हुए तैयारे आरंभ कर देते है। फिर दोनो सेनाओं के दोनो पक्ष अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर कुरूक्षेत्र मे एक दूसरे के सामने आ जाते है। युद्ध की स्थिति को देखने के लिए महर्षि व्यास धृतराष्ट्र को दिव्य नेत्र प्रदान करना चाहते है पर, धृतराष्ट्र अपनी कुल की हत्या युद्ध मे अपनी ऑखो से नहीं देखना चाहते है किंतु युद्ध का सारा वृतांत अवश्य सुनना चाहते है। अत: महर्षि व्यास ने संजय को दिव्य दृष्टि देकर कहा कि “ये संजय तुम्हे युद्ध का वृतांत सुनायेंगे। युद्ध की समस्त घटनाओं को ये प्रत्यक्ष देख सकेगे इनसे कोई भी बात छुपी नही रह सकेगी। इस प्रकार संजय दिव्य दृष्टि के माध्यम से युद्ध की सारी घटन्नों को धृतराष्ट्र को सुनाते हुए आगे कहते है।
संजय उवाच
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत॥2॥
अनुवाद:- संजय ने कहा- दुर्योधन ने व्यूह मे खड़ी हुई पाण्डवो की सेना को देखी द्रोणाचार्य के पास जाकर यह कहा।
व्यूदां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥3॥
अनुवाद:- हे आचार्य! आपके बुद्धिमान शिष्य द्रुपदपुत्र (धृष्टद्युम्न) द्वारा व्यूहाकार खड़ी की पाण्डवों के इस विशाल सेना को देखिए।
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथ:॥4॥
धृष्टकेतुश्चेकितान: काशिराजश्च वीर्यवान।
पुरूजित्कुंतिभोजश्च शैव्यश्च नरपुंणव:॥5॥
युधामन्युश्च विक्रांत उत्तमौजाश्च वीर्यवान।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथा:॥6॥
अनुवाद:- इसमे शूर, धनुर्धर, भीम तथा अर्जुन के तुल्य योद्धा सात्यिकि, विराट, महारथी द्रुपद , धृष्टकेतु, चेकिस्तान, बलवान काशीराज, पुरूजित, कुंतिभोज और मनुष्यों मे श्रेष्ठ शैव्य, पराक्रमी युधामन्यु, बलवान उत्तमौजा, सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के (पाँचो) पुत्र, ये सब महारथी है।
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मंम सैन्यस्य संज्ञार्थ तान ब्रवीमि ते॥7॥
अनुवाद:- हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! हमारे पक्ष में भी जो प्रधान है, उनको आप समझ लिजिए। आपकी जानकारी के लिए, मेरी सेना के जो-जो सेनापति है उनको मै बतलता हूँ।
भवांभीष्श्च कर्णश्च कृपश्च समितिंजय:।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥8॥
अनुवाद :- उनमे आप और भीष्मपितामह, कर्ण, संग्रामजित कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और सोमदत्त का पुत्र भूरिश्रवा है।
अन्ये च बहव: शूरा मदर्थे व्यक्तजिविता:।
नानाशस्त्रप्रहरणा: सर्वे युद्ध विशारदा:॥9॥
अनुवाद:- इनके अलावा और भी बहुत से वीर, मेरे लिए प्राणों की ममता का त्याग किए नाना प्रकार से शस्त्रों से प्रहार करने वाले तथा युद्ध के बड़े प्रवीण है।
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम॥10॥
अनुवाद:- हे महानुभाव, भीष्मपितामह से भलीभांति रसा प्राप्त हमारे सेना विशाल है। भीमसेन से रक्षित पाण्डवों की सेना छोटी है।
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिता:।
भीष्ममेवाभिरक्षंतु भवंत: सर्व एव हि॥11॥
अनुवाद:- अब आप सब वीरजन व्यूहों के मार्गो पर स्थित होकर भीष्म की रक्षा करें।
तस्य संजन्यन्हर्ष कुरूवृद्ध: पितामह:।
सिंहनादं विनद्योच्चै: शड्खं दध्मौ प्रतापवान॥12॥
अनुवाद: दुर्योधन को हर्षित करते हुए भीष्मपितामह ने सिंह के समान गर्जनयुक्त शंड्ख बजाया।
क्रमश:
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ReplyDeleteThis is the greaaaaaaaaaaaaaaaaaaaat step
ReplyDeleteCongratulations ..................
very good work
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